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माननिय अन्ना हजारे जी के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के समर्थन में; (अखिल विश्व गायत्री परिवार शांतिकुंज हरिद्वार)

माननिय अन्ना हजारे जी के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के समर्थन में;  (in Support of Hon'ble Anna Hazare Ji's Anti Corruption Campaign; 
(अखिल विश्व गायत्री परिवार शांतिकुंज हरिद्वार); International Gayatri Parivaar, Shantikunj, Haridwaar;

Source : युगऋषि पंडित श्री राम शर्मा, आचार्य जी की क्रन्तिकारी अमृतवाणी; Yugrishi Pandit Sriraam Sharma Acharaya Ji's Amritvani (holy talk of Mr. Y.P. Sharma - Professor Gyatri Parivaar - Shantikunj - Haridwaar);

युग निर्माण योजना की कार्यपद्धिति को तीन चरणों में विभाजित किया गया है,
पहिला चरण : ज्ञान यज्ञ - यानि लोगो को दिशाएं देना - लोगो के विचारों की विक्रितिओं का समाधान करना, गलत सोचने के तरीके को सही सोचने में परिणित कर देना, पुराने घास - कूड़े - कबाड़े को जो हमारे विचारों, मान्यताओं और परम्पराओं के रूप में विधमान हैं, उसको हटाकर उसमे जो विवेकयुक्त और बुद्धिसंगत विचार पद्धिति है, उसकी स्थापना करने का काम काम ज्ञान यागे का है |

दूसरा काम - की लोगो को कुछ रचनात्मक कार्य करने, और सेवा करने की प्रेरणा दी जाये | मनुष्य केवल अपनी और अपने बेटे / बच्चों के ही सेवा / चिंता ना करे - बल्कि अपने समाज, धर्म, गाँव, शहर, संस्कृति, देश, अवं विश्व (यहाँ तक की पुरे ब्रहमांड) तक की सेवा / करना उसका फ़र्ज़ है | दूसरा चरण यही है की आदमी को आठ घंटा सोने और आठ घंटा कमाना, और बाकि आठ घंटे में कम से कम चार घंटे - लोकमंगल, सर्वमंगल, सर्वहित, कार्यों में - तन और मन से सेवा करनी चाहिए, और यदि संभव हो तो इन सभी सर्वमंगल कार्यों पर कम से कम एक दिन की आमदनी / या जो भी श्रधापूर्वक हो सके - इनपर खर्च करना चाहिए | (बजाए शराब और वेश्या-वृत्ति के);

जिस से की इस पैसे और समय से रचनात्मक कार्य हो सके, और यह आवश्यक भी है | तभी तो रचनात्मक कार्य हो सकेंगे, अपने इन कार्यक्रमों में इस बात को जोड़कर रखा गया है कि जो भी व्यक्ति अपने कार्यक्रमों से, विचारों से प्रभावित जो, उन्हें किसी न किसी रूप से समाज के लिए कुछ श्रम, काम, और राष्ट्र को विश्व बनाने का और मनुष्य को बनाने एवं सम्पूर्ण परिवार को बनाने का कोई रचनात्मक कार्य करना ही चाहिए |

तीसरा चरण जो अपना रह जाता है, वह संघर्ष का है | और संघर्ष के बिना अवान्छनिये तत्वों को हटाया नहीं जा सकता | कुछ निहित स्वार्थ ऐसे होते हैं, उनकी दाढ़ी में ऐसा कुछ लग जाता है अथवा किसी अपनी ही बेवकूफी को ऐसा प्रेस्टीज पॉइंट बना लेते है कि उससे पीछे हटना ही नहीं चाहते हैं | अपनी बुद्धिमानी, अपनी अक्लमंदी और अपना अहंकार, अपने घमंड को इतना जयादा बढा लेते है कि अपने साथ जुड़े हुए जो विचारों का ही समर्थन करते हैं|

इस तरीके से रुढीवदिओं से लेकर के जिनके स्वार्थ जुड़े हैं, जागीरदारों से लेकर ताल्लुकेदारों तक और पण्डे-पुजरिओं से लेकर दुसरे अवान्छनियेतत्वों तक जिनके मुह में हराम के पैसों का, हराम की आमदनी का, बेकार की बैटन का चस्का लग गया है, रिश्वतखोरी का चस्का लग गया, वो सीधे तरीके से मन जायेंगे क्या ? नहीं ! हम जब सम्झएंते, हाँ - हाँ - हाँ - करेंगे - कहेंगे की आपने बिलकुल सही कहा, ऐसा ही होना चाहिए - वीर भ्रष्टाचार विरोधी समिति के प्रेसिडेंट बन जायेंगे और करेंगे पूरा भ्रष्टाचार | और आजकल ऐसे ही लोग अधिक हैं, तो उनसे निपटा कैसे जाये ? अगर समझाते हैं उनको तो हमसे भी जयादा वो दुसरो को समझाते हैं, ऐसे लोगो को समझाने से क्या बात बनेगी ? ऐसे जड़ लोग बैटन से समझ नहीं सकते !
एक ही तरीका है के उनसे संघर्ष किया जाये, उनको धमकाया जाये, उनको पदों से हटाया जाये, उनका मुकाबला किया जाये, और मोर्चा लिया जाये | भगवन ने जब-जब अवतार लिया है - उस समाये जब ऋषियों के शिक्षण बेकार हो गए हैं - और आज जब ऋषियों की रामायण और भागवत कथा बेकार होती नज़र आ रही है, टक्कर खाने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन विचार और विचारों में घनघोर टक्कर होने ही वाली है |

भावी युद्ध तो होगा ही लेकिन तमंचों, तोपों, एटम बमों का युद्ध होगा, ऐसा मई कुछ नहीं कहता या चाहता हूँ, होता होगा तो होगा, न होता होगा तो न होगा, लेकिन सतयुग को लाने के लिए जिस महायुद्ध की रारुरत है, जिस महाभारत की जरुरत है, वो कुछ अजीब किस्म का होगा | वह इसमें विचारशील व्यक्ति - हर मुर्ख और अविवेकी व्यक्ति के साथ लडेगा-झाग्देहा और जद्दोजहद करनी पड़ेगी |





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